
प्रतीक चिन्ह
विश्वविद्यालय का प्रतीकचिह्न भारतीयचिन्तनसरणि, उदात्तमनीषा, सत्संकल्प तथा दिव्यसंस्कार को अभिव्यंजित करता है, सूर्य की आभा से युक्त महाकालेश्वर मन्दिर का उन्नत कलश प्रवहमान ध्वज के साथ उन्नति, उत्साह, ओज एवं ज्ञान को इङ्गित करता है, कमल समृद्धि, पवित्रता, सौन्दर्य तथा सुगन्धि का सन्देश दे रहा है, पद्मपत्र निष्काम कर्मयोग के दार्शनिक पक्ष को उद्घाटित कर रहा है, हंसद्वय ज्ञान, विज्ञान, गुणग्राहिता तथा विवेक का परिचायक है, प्रवाहित निर्मलजलधारा शास्त्रपरम्परा तथा संसारचक्र का द्योतक है।
ध्येयवाक्य ‘‘संस्कृतं नाम दैवी वाक्‘‘
यह आदर्शवाक्य महाकवि दण्डीकृत काव्यादर्श के प्रथमपरिच्छेद की 33 वीं कारिका का प्रथम चरण है जिसका भावार्थ है – महर्षिगण ने संस्कृतभाषा को दिव्यवाणी कहा है क्योंकि संस्कार युक्त संस्कृत दैवी भाषा है जिसके व्यवहार मात्र से व्यक्ति देवत्व को प्राप्त होता है।
संकल्पना
पुराण प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी के निकट देवास मार्ग पर लगभग 25 एकड़ भूमि में एक रमणीय उपत्यका (घाटी) क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्थापित है। एक भव्य द्वार से्रवेश करने के उपरान्त आपका प्रवेश विश्वविद्यालय के प्रथम शैक्षणिक परिसर ’’पञ्चवटी’’ में होता है । यह परिसर पाँच भवनों, मध्य के विशाल चत्वर (चबूतरे) तथा सुन्दर सुरभित वाटिका के कारण प्राचीन गुरुकुल का आभास देता है। नवागत प्रेक्षक को यह स्थान अद्भुत आनन्द और शान्ति प्रदान करता है। इस परिसर के निकट से चलकर चहुँओर हरे-भरे पुष्पित पादपों का अवलोकन करते हुए आप जैसे-जैसे अधित्यका पर चढ़ते हैं, आपको पतञ्जलि छात्रावास के दर्शन होते हैं। यहाँ सम्मुख सुन्दर प्राङ्गण में खड़े होकर आप उन आधार भूमियों की ओर दृष्टिपात करते हैं, जहाँ शीघ्र ही विस्तृत शैक्षणिक भवन, प्रशासनिक भवन, विशाल सभागार आदि भवनों का निर्माण होना है। छात्रावास परिसर से थोड़ा और ऊँचाई पर पहुँचकर आपको विशाल मैदान के दर्शन होते हैं, जहाँ बहूद्देशीय क्रीडाङ्गण, वेधशाला आदि का निर्माण प्रस्तावित है। साथ ही परिसर में भरत के रङ्गमञ्च, नक्षत्रवाटिका, नवग्रह वाटिका, नलिन सरोवर, यज्ञशाला, पुस्तकालय भवन, वैदिक यज्ञीय उपकरण सङ्ग्रहालय, ज्योतिष प्रयोगशाला, मनोविज्ञान प्रयोगशाला, उच्चारण तथा ध्वनि अनुसन्धान केन्द्र, छन्द मन्दिर, संस्कृत वीथिका, शिक्षा सुभाषित भित्ति, फलोद्यान, आवासगृह आदि के निर्माण की संकल्पना है। भविष्य में यह परिसर देश विदेश के छात्रों, शिक्षाविदों तथा यात्रियों के लिए आकर्षण तथा प्रेरणा का केन्द्र रहेगा।
उद्देश्य
- संस्कृत की शिक्षा और ज्ञान का अभिवर्धन तथा प्रसार करना।
- संस्कृत भाषा की अभिवृद्धि के लिए अभिभाषणों, सेमीनारों, परिसंवादों, अधिवेशनों को आयोजित करना।
- परीक्षाएँ आयोजित करना और उपाधियाँ तथा अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्टताएँ प्रदान करना।
- ऐसे समस्त कार्य करना जो विश्वविद्यालय के समस्त उद्देश्यों या उनमें से किसी भी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए अनुषांगिक, आवश्यक या सहायक हैं।
कार्यक्षेत्र
विश्वविद्यालय की अधिकारिता का विस्तार सम्पूर्ण मध्यप्रदेश राज्य पर होगा : परन्तु राज्य सरकार विश्वविद्यालय को,उसके अध्यापन या गवेषणा सम्बन्धी क्रियाकलापों में से किसी क्रियाकलाप को अंशतः या पूर्णतः चलाने के लिए मध्यप्रदेश राज्य से बाहर की किसी संस्था के साथ सहयोग के लिए अनुमति दे सकेगा ।